मौला ए कायनात अली:-अनवार
चौदह सौ बरस पहले यतीमों ग़रीबों तक रोटियाँ और मुहतहक़ों तक उनका हक़ पहुँचाने वाले मौला ए कायनात अली इब्ने अबी तालिब को मुलूकी तक़तों ने अब्दुर्रहमान इब्ने मुल्जिम के ज़रीये बहालते सजदा ओ रोज़ा मसजिदे कूफ़ा में शहीद करवाया था।
उन्नीस रमज़ान की सुब्ह मौला ए कायनात अली इब्ने अबी तालिब के सर पर मारी गई ज़र्बत यतीमों ग़रीबों की रोटी और मुसतहक़ों के हक़ पर ज़र्ब थी। इस ज़र्बत ने न सिर्फ़ अली ही को बल्कि यतीमों ग़रीबों और मुसतहक़ों की उम्मीद को भी ख़ून में नहलाया। इक्कीस रमज़ान को बेहतरीन इंसान अली इस दुनिया से रुख़सत हो गये।
अफ़सोस कि तब भी बद-बख़्त मुसलमानों ने अली से कुछ न पूछा जब वह कहते थे कि इस से पहले कि मुझे खो बैठो तुम जो पूछना चाहो पूछ लो,मैं तुम्हें ज़मीन से ज़ियादा आसमान के रास्तों के बारे में बता सकता हूँ।एक दिन आसमान पर लोहे के टुकड़े उड़ेंगे, दरिया से रौशनी पैदा की जा सकती है,इन रेत के ज़र्रों में हज़ारों सूरज है!
(मज़हब) दीन क्या है? इस सवाल पर कहा कि एक ख़ुदा की इबादत और मख़ूक़ की ख़िदमत दीन है। इस बात कि हिदायत अली ने सदियों पहले कर दी थी उस पेड़ को पानी दो जिसे तूमने लगाया न हो और उन परिंदों को दाना पानी रख दो जिन्हें तुम ने पाला न हो!
रेगिस्तान में खजूर की गुठलियाँ बोते फिरने वाले उस इंसान से जब अरब पूछते कि क्यों बोते हो यह खजूर की गुठलियाँ क्या यह तुम्हारी ज़िन्दगी में फलेंगे तो वह कहता कि आने वाली नस्लों की ज़िन्दगी में तो फलेंगे! वह मुसलमानों से कहता था कि खजूर के पेड़ तुम्हारी फुफियाँ हैं! अब कोई क्या समझेगा अल्लाह की मख़लूक़ से से ऐसा गहरा नाता रखने वाले का अल्लाह से कितना पुख़ता रिश्ता था!
वह कैसा अज़ीम रोज़ेदार और नमाज़ी रहा होगा जिस ने आगाह किया कि इंसान को उसके रोज़ा नमाज़ से नहीं उसके मुआमलात से पहचानो!! और वह कैसा हक़ पहुचाने वाला रहा होगा जिस ने दावत दी कि अगर मैने किसी का हक़ न पहुँचाया हो तो वह मेरा दामन खैंच ले!!
तुम कितने रह्म दिल थे ऐ अली कि तुम ने अपने क़ातिल को भर पियाला दूध पिलाया और पूछ कि तू ने मुझे क्यों मार दिया क्या मैं तेरा अच्छा इमाम न था!! तुम कैसा करीमाना इंसाफ़ करने वाले थे कि तुम ने अपने बच्चों से वसीयत की कि हो सके तो इसे मुआफ़ कर देना वर्ना फिर एक ही ज़र्ब लगाना कि इस ने मुझे एक ज़र्ब लगाई है।
ऐ अली आज तुम से कुछ माँगने की शब नहीं मगर माँगने वाले तो अपनी ज़रूरतों से आजिज़ होते है।तुम तो जानते हो कि मैं तुम्हारे दर का र्रियहा मंगता हूँ और चाहता हूँ कि अपनी ख़ूबियों का कुछ सदक़ा मुझे दे दो कि मुझे बहुत ज़ियादा ज़रूरत है और मेरी वह मुरादें पूरी कर दो जो मेरे एहसास की शिद्दत और हालात की तंगी पर लिखी हैं।
अनवार