किसी ने भगवान के मन्दिर को     भ्रष्ट कर दिया। यह हड्डी किसी     पापी ने मंदिर में डाल दी

"एक बार हज़ारों भूखे लोग एक व्यवसायी के गोदाम में भरे अन्न को लूटने के लिए निकल पड़े। 


"व्यवसायी हमारे पास आया। कहने लगा - 


  "स्वामी कुछ कीजिये। ये लोग तो 
   मेरी सारी जमा पूंजी लूट लेंगे। 
   आप ही बचा सकते है। आप जो 
   कहेंगे वो सेवा करेंगे।" 


"तब बच्चा, हम उठे, हाथ में एक हड्डी ली, और मंदिर के चबूतरे पर खड़े हो गए। जब वे हजारों भूखे गोदाम लूटने का नारा लगाते आये, तो मैंने उन्हें हड्डी दिखाई और जोर से कहा - 


   "किसी ने भगवान के मन्दिर को 
   भ्रष्ट कर दिया। यह हड्डी किसी 
   पापी ने मंदिर में डाल दी। विधर्मी 
   हमारे मंदिर अपवित्र करते है, 
   हमारे धरम को नष्ट करते है। हमें 
   शर्म आनी चाहिए। मैं इसी पल से 
   यहाँ उपवास करता हूँ। मेरा 
   उपवास तभी टूटेगा, जब मंदिर की 
   फिर से पुताई होगी और हवन 
   करके उसे पुनः पवित्र किया 
   जाएगा!" 


बस बच्चा, वह जनता आपस में ही लड़ने लगी। मैंने उनका नारा बदल दिया। जब वे लड़ चुके, तब मैंने कहा, 


   "धन्य है इस देश की धरमप्राण 
   जनता! धन्य है अनाज के व्यापारी 
   सेठ अमुकजी। उन्होंने मन्दिर का 
   शुद्धि खर्च देने को कहा है।" 


"बच्चा, जिसका गोदाम लूटने वे भूखे जा रहे थे, उसकी जय बोलने लगे। बच्चा यही धरम का प्रताप है !"


-- हरिशंकर परसाई • 'धरम का प्रताप' में एक ख़ुदबयानी बाबा