24 अक्टूबर 1775 ईस्वी में मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र की विलादत हुई थी | आप का पूरा नाम अबु ज़फ़र सिराज-उद्-दीन मुहम्मद बहादुर शाह है | आप के वालिद का नाम अकबर शाह द्वितीय और वालिदा का नाम लीला बानो बेग़म है |
बहादुर शाह ज़फ़र मुग़ल सल्तनत के आख़िरी यानी 21 वें और दौर-ए-ज़वाल के 14 वें मुगल बादशाह थे जिन्होंने तख़्त-ए-दिल्ली पर 20 साल हुक़ूमत की हालांकि हुक़ूमत सिर्फ़ कहने मात्र ही को थी क्योंकि वर्चस्व तो फरंग का था |
बहादुर शाह ज़फ़र की क़यादत में क्रांतिकारी और हिंदू राजाओं ने फ़रंग के ख़िलाफ़ 1857 में जंग की थी जिसे तारीख़ में 1857 की क्रांति के नाम से जाना जाता है हालांकि यह सफ़ल न हो सकी शुरुआत में सफलता तो मिली मगर बाद में इस क्रांति को दबा दिया गया और बहादुर शाह ज़फ़र को निर्वासित कर रंगून की जेल में भेज दिया गया |
ऐ वाए इंक़लाब ज़माने के जौर से
दिल्ली 'ज़फ़र' के हाथ से पल में निकल गई
जब बहादुर शाह ज़फ़र को गिरफ्तार कर लिया गया था तो बाद में एक फ़रंग (मेजर हडसन) ने शायराना अंदाज़ में बहादुर शाह ज़फ़र पर तंज़ कसते हुए कहा कहा था,
दम दमे में दम नहीं, अब खैर मांगो ज़ान क़ी
ऐ ज़फर! ठंडी हुई शमशीर हिन्दुस्तान क़ी
इस पर बहादुर शाह ज़फ़र ने मेजर हडसन को जवाब दिया,
हिंदियों में बू रहेगी जब तलक ईमान क़ी
तख़्त-ए-लंदन तक चलेगी तेग़ हिन्दुस्तान की
1862 ईस्वी में रंगून में 87 साल की उम्र में बहादुर शाह ज़फ़र की वफ़ात हो गई
कितना है बद-नसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में